Monday, November 2, 2015

शहर की दौड़ !




इस शोर में हम कहीं खो गए !
पैसे कमाने कि दौड़ में, इतना आगे निकल गए,
कि फिर शमशान में ही जा रुके !

आँसू निकले कि मौसम बदल गया




आँखों से आँसू निकले कि मौसम बदल गया !
ठंढ का मौसम बरसात में बदल गया !

शहर की जिंदगी एक लाश बन गई है !


शहर की जिंदगी एक लाश बन गई है,
न होश है, न ठिकाना, न मतलब है,
न परवाह, न खबर है, न इत्मेनान है 
दौड़ती ये जिंदगी की रफ़्तार कैसी ?? 
गिरते हैं कहर, फुर्सत नहीं मिलती मिलने की, 
पता भी नहीं होता,ये आखरी दौड़ है जिंदगी की, शमशान तक !!


भोर भाई शुभ आँखें खोलो


भोर भाई शुभ आँखें खोलो
लड्डू लाया हूँ मुंह धोलो

चिड़ियाँ गायें हैं चुन चुन चुन
पवन चले है सुर सुर सुर सुर

सूर्यकिरण निकली प्यारी सी
आसमान से छट गए हैं तारे

कोयल गा रही गीत है प्यारे
मंदिर में बज रहे शंख घंटाले

जागो अब, कबतक सोओगे
नहीं जागे तो पछ्ताओगे !