Monday, November 2, 2015

शहर की जिंदगी एक लाश बन गई है !


शहर की जिंदगी एक लाश बन गई है,
न होश है, न ठिकाना, न मतलब है,
न परवाह, न खबर है, न इत्मेनान है 
दौड़ती ये जिंदगी की रफ़्तार कैसी ?? 
गिरते हैं कहर, फुर्सत नहीं मिलती मिलने की, 
पता भी नहीं होता,ये आखरी दौड़ है जिंदगी की, शमशान तक !!


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