Monday, December 20, 2010

कुछ ख्वाब ऐसे भी

कुछ ख्वाब ऐसे भी...




कुछ ख्वाब ऐसे भी जो आसमा की बुलन्दियों में उड़ते रहे
कुछ ख्वाब ऐसे भी जो जमीन के अंदर सुलगते रहे ,
कुछ सुलझे कुछ उलझते रहे ,
कुछ रुके कुछ चलते रहे ,
कुछ हँसे कुछ मचलते रहे,
कुछ गिरे कुछ फिसलते रहे



कुछ कदम भर चले ,कुछ साथ दूर तक चलते रहे ,
कुछ आवाज़ दिए ,कुछ शान्त चलत रहे


कुछ बहके ,कुछ खामोश कहते रहे ,
कुछ थे पास कुछ दूर रहते रहे
कुछ मिले पास ,कुछ पास आने को कहते रहे !